Monday, August 2, 2010

राजस्थान

राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि.मी. (1,32,139 वर्ग मील) है।

जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरूस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान का एकमात्र पहाडी, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उध्यान है, जो पक्षियों की रक्षार्थ निर्मित किया गया है।

प्राचीन काल में राजस्थान

राजस्थान भारत वर्ष के पश्चिम भाग में अवस्थित है जो प्राचीन काल से विख्यात रहा है। तब इस प्रदेश में कई इकाईयाँ सम्मिलित थी जो अलग-अलग नाम से सम्बोधित की जाती थी। उदाहरण के लिए जयपुर राज्य का उत्तरी भाग मध्यदेश का हिस्सा था तो दक्षिणी भाग सपालदक्ष कहलाता था। अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरुदेश का हिस्सा था तो भरतपुर, धोलपुर, करौली राज्य शूरसेन देश में सम्मिलित थे। मेवाड़ जहाँ शिवि जनपद का हिस्सा था वहाँ डूंगरपुर-बांसवाड़ा वार्गट (वागड़) के नाम से जाने जाते थे। इसी प्रकार जैसलमेर राज्य के अधिकांश भाग वल्लदेश में सम्मिलित थे तो जोधपुर मरुदेश के नाम से जाना जाता था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश कहलाता था तो दक्षिणी बाग गुर्जरत्रा (गुजरात) के नाम से पुकारा जाता था। इसी प्रकार प्रतापगढ़, झालावाड़ तथा टोंक का अधिकांस भाग मालवादेश के अधीन था। बाद में जब राजपूत जाति के वीरों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो उन भागों का नामकरण अपने-अपने वंश अथवा स्थान के अनुरुप कर दिया। ये राज्य उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़, प्रतापगढ़, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, सिरोही, कोटा, बूंदी, जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली, झालावाड़, और टोंक थे। [१] इन राज्यों के नामों के साथ-साथ इनके कुछ भू-भागों को स्थानीय एवं भौगोलिक विशेषताओं के परिचायक नामों से भी पुकारा जाता है। ढ़ूंढ़ नदी के निकटवर्ती भू-भाग को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर) कहते हैं। मेव तथा मेद जातियों के नाम से अलवर को मेवात तथा उदयपुर को मेवाड़ कहा जाता है। मरु भाग के अन्तर्गत रेगिस्तानी भाग को मारवाड़ भी कहते हैं। डूंगरपुर तथा उदयपुर के दक्षिणी भाग में प्राचीन ५६ गांवों के समूह को ""छप्पन नाम से जानते हैं। माही नदी के तटीय भू-भाग को कोयल तथा अजमेर के पास वाले कुछ पठारी भाग को ऊपरमाल की संज्ञा दी गई है।

राजस्थान का एकीकरण



राजस्थान भारत का एक महत्ती प्रांत है। यह तीस मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतों ने विलय किया। इसी कारण इसका नाम राजस्थान बना। राजस्थान यानि राजपूतो का स्थान,इसका नाम राजस्थान होने के पीछे यही एकमात्र मजबूत तर्क है। अगर राजपूताना की देशी रियासतों के विलय के बाद बने इस राज्य की कहानी देखे तो यह प्रासंगिक भी लगता है।

भारत के संवैधानिक इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । ब्रिटिश शासको द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड सी मच गयी थी , उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखे तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाइस देशी रियासते थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासको का कब्जा था इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतो का विलय होना यानि एकीकरण कर राजस्थान नामक प्रांत बनाना था। सत्ता की होड के चलते यह बडा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से शासन चलाते आ रहे है। उन्हें शासन करने का अनुभव है । इस कारण उनकी रियासत को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया जाए । करीब एक दशक की उहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुयी राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया। कुल सात चरण में एक नवंबर 1956 को पूरी हुयी । इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासती मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी पी मेनन की भूमिका महत्ती साबित हुयी । इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान का निर्माण हो सका।

पहला चरण- 18 मार्च 1948

सबसे पहले अलवर , भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतो का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर मत्स्य यूनियन के नाम से पहला संध बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इनमें अलवर व भरतपुर पर आरोप था कि उनके शासक राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया । यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे।18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदय सिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संध नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था। जनसंख्या लगभग 19 लाख और आय एक करोड 83 लाख रूपए सालाना थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा।

दूसरा चरण 25 मार्च 1948

राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण पच्चीस मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ , किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संध में विलय हुई रियासतों में कोटा बडी रियासत थी इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। के तत्कालीन महाराव बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बडे भाई थें इस कारण उन्हे यह बात अखरी की कि छोटे भाई की राजप्रमुखता में वे काम कर रहे है। इस ईर्ष्या की परिणति तीसरे चरण के रूप में सामने आयी।

तीसरा चरण 18 अप्रैल 1948

बूंदी के महाराव बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडें, मगर बडे राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को पटाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बडे भाई ने काम किया। अठारह अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संध में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ संयुक्त राजस्थान संघ। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया। इसीके साथ बूंदी के महाराजा की चाल भी सफल हो गयी।

चौथा चरण तीस मार्च 1949

इससे पहले बने संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान देशी रियासतों जोधपुर , जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने तीस मार्च 1949 को ग्रेटर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। यहीं आज के राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हांलांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता है , क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही मत्स्य संघ के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। अलवर , भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतो पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इस कारण इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी।

पांचवा चरण 15 अप्रेल 1949

पन्द्रह अप्रेल 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।

छठा चरण 26 जनवरी 1950

भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवागढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत विलय राजस्थान में किया गया।

सांतवा चरण एक नवंबर 1956

अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नही चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था , दूसरे राजस्थानी, बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पडा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गया। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया। इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। जो राजस्थान के इतिहास का एक अति महत्ती कार्य था


भूगोल

राजस्थान की चोहरी इसे एक पतंगाकार आकृति प्रदान करता है। राज्य २३ ३ से ३० १२अक्षांश और ६९ ३० से ७८ १७ देशान्तर के बीच स्थित है। इसके उत्तर में पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा, दक्षिण में मध्यप्रदेश और गुजरात, पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश एवं पश्चिम में पाकिस्तान है।

सिरोही से अलवर की ओर जाती हुई ४८० कि.मी. लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक दृष्टि से राज्य को दो भागों में विभाजित करती है। राजस्थान का पूर्वी सम्भाग शुरु से ही उपजाऊ रहा है। इस भाग में वर्षा का औसत ५० से.मी. से ९० से.मी. तक है। राजस्थान के निर्माण के पश्चात् चम्बल और माही नदी पर बड़े-बड़े बांध और विद्युत गृह बने हैं, जिनसे राजस्थान को सिंचाई और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध हुई है। अन्य नदियों पर भी मध्यम श्रेणी के बांध बने हैं। जिनसे हजारों हैक्टर सिंचाई होती है। इस भाग में ताम्बा, जस्ता, अभ्रक, पन्ना, घीया पत्थर और अन्य खनिज पदार्थों के विशाल भण्डार पाये जाते हैं।

राज्य का पश्चिमी संभाग देश के सबसे बड़े रेगिस्तान "थारपाकर' का भाग है। इस भाग में वर्षा का औसत १२ से.मी. से ३० से.मी. तक है। इस भाग में लूनी, बांड़ी आदि नदियां हैं, जो वर्षा के कुछ दिनों को छोड़कर प्राय: सूखी रहती हैं। देश की स्वतंत्रता से पूर्व बीकानेर राज्य गंगानहर द्वारा पंजाब की नदियों से पानी प्राप्त करता था। स्वतंत्रता के बाद राजस्थान इण्डस बेसिन से रावी और व्यास नदियों से ५२.६ प्रतिशत पानी का भागीदार बन गया। उक्त नदियों का पानी राजस्थान में लाने के लिए सन् १९५८ में राजस्थान नहर (अब इंदिरा गांधी नहर) की विशाल परियोजना शुरु की गई। जोधपुर, बीकानेर, चुरु एवं बाड़मेर जिलों के नगर और कई गांवों को नहर से विभिन्न "लिफ्ट परियोजनाओं' से पहुंचाये गये पीने का पानी उपलब्ध होगा। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान का एक बड़ा भाग शस्य श्यामला भूमि में बदल जायेगा। सूरतगढ़ में यह नजारा इस समय भी देखा जा सकता है।

इण्डस बेसिन की नदियों पर बनाई जाने वाली जल-विद्युत योजनाओं में भी राजस्थान भागीदार है। इसे इस समय भाखरा-नांगल और अन्य योजनाओं के कृषि एवं औद्योगिक विकास में भरपूर सहायता मिलती है। राजस्थान नहर परियोजना के अलावा इस भाग में जवाई नदी पर निर्मित एक बांध है, जिससे न केवल विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई होती है, वरन् जोधपुर नगर को पेय जल भी प्राप्त होता है। यह सम्भाग अभी तक औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पर इस क्षेत्र में ज्यो-ज्यों बिजली और पानी की सुविधाएं बढ़ती जायेंगी औद्योगिक विकास भी गति पकड़ लेगा। इस बाग में लिग्नाइट, फुलर्सअर्थ, टंगस्टन, बैण्टोनाइट, जिप्सम, संगमरमर आदि खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जैसलमेर क्षेत्र में तेल मिलने की अच्छी सम्भावनाएं हैं। हाल ही की खुदाई से पता चला है कि इस क्षेत्र में उच्च कि की गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अब वह दिन दूर नहीं है जबकि राजस्थान का यह भाग भी समृद्धिशाली बन जाएगा।

राज्य का क्षेत्रफल ३.४२ लाख वर्ग कि.मी. है जो भारत के क्षेत्रफल का १०.४० प्रतिशत है। यह भारत का सबसे बड़ा राज्य है। वर्ष १९९६-९७ में राज्य में गांवों की संख्या ३७८८९ और नगरों तथा कस्बों की संख्या २२२ थी। राज्य में ३३ जिला परिषदें, २३५ पंचायत समितियां और ९१२५ ग्राम पंचायतें हैं। नगर निगम २ और सभी श्रेणी की नगरपालिकाएं १८० हैं।

सन् १९९१ की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या ४.३९ करोड़ थी। जनसंखाय घनत्व प्रति वर्ग कि.मी. १२६ है। इसमें पुरुषों की संख्या २.३० करोड़ और महिलाओं की संख्या २.०९ करोड़ थी। राज्य में दशक वृद्धि दर २८.४४ प्रतिशत थी, जबकि भारत में यह दर २३.५६ प्रतिशत थी। राज्य में साक्षरता ३८.८१ प्रतिशत थी. जबकि भारत की साक्षरता तो केवल २०.८ प्रतिशत थी जो देश के अन्य राज्यों में सबसे कम थी। राज्य में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति राज्य की कुल जनसंख्या का क्रमश: १७.२९ प्रतिशत और १२.४४ प्रतिशत है।



राजस्थान के प्रसिद्ध स्थल

1. गुलाबी नगरी के रूप में प्रसिद्ध जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी है।

2. शहर इसके भव्य किलों, महलों और सुंदर झीलों के लिए प्रसिद्ध है, जो विश्वभर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

3. सिटी पैलेस महाराजा जयसिंह II द्वारा बनवाया गया था और मुगल औऱ राजस्थानी स्थापत्य का एक संयोजन है।

4. महराजा सवाई प्रताप सिंह ने हवामहल 1799 ईसा में बनवाया और वास्तुकार लाल चन्द उस्ता थे ।

5. अम्बेर दुर्ग भवन-समूह के महलों, विशाल कक्षों, सीढ़ीयों, स्तंभदार दर्शक दीर्घाओं, बगीचों और मंदिरों सहित कई भाग हैं।

6. अम्बेर महल मुगल औऱ हिन्दू स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

7. गवर्नमेण्ट सेन्ट्रल म्यूजियम 1876 में, जब प्रिंस ऑफ वेल्स ने भारत भ्रमण किया, बनवाया गया था और 1886 में जनता के लिए खोला गया ।

8. गवर्नमेण्ट सेन्ट्रल म्यूजियम में हाथीदांत कृतियों, वस्त्रों, आभूषणों, नक्काशीदार काष्ठ कृतियों, सूक्ष्म चित्रों संगमरमर प्रतिमाओं, शस्त्रों औऱ हथियारों का समृद्ध संग्रह है।

9. सवाई जय सिंह II ने अपनी सिसोदिया रानी के लिए सिसोदिया रानी का बाग बनवाया।

10. जलमहल शाही बतख शिकार गोष्ठियों के लिए बनाया गया एक सुंदर महल है।

11. कनक वृंदावन जयपुर में एक लोकप्रिय विहार स्थल है।

12. जयपुर में बाजार जीवंत होते हैं और दुकाने रंग बिरंगे सामानों से भरी है, जिसमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, वस्त्र, मीनाकारी सामान, आभूषण, राजस्थानी चित्र आदि शामिल हैं।

13. जयपुर संगमरमर की प्रतिमाओं, ब्लू पॉटरी औऱ राजस्थानी जूतियों के लिए भी प्रसिद्ध है।

14. जयपुर के प्रमुख बाजार, जहां से आप कुछ उपयोगी सामान खरीद सकते हैं, जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ साथ हैं।

15. जयपुर शहर के भ्रमण का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से मार्च के मध्य में है।

16. राजस्थान राज्य परिवहन निगम (RSTC) की उत्तर भारत के सभी प्रसुख गंतव्यों के लिए बस सेवाएं हैं।

भरतपुर

17. ‘पूर्वी राजस्थान का द्वार’ भरतपुर, भारत के पर्यटन मानचित्र में अपना महत्व रखता है।

18. भारत के वर्तमान मानचित्र में एक प्रमुख पर्यटक गंतव्य, भरतपुर पांचवी सदी ईसा पूर्व से कई अवस्थाओं से गुजर चुका है।

19. 18 वीं सदी का भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य, जो केवलादेव घाना नेशनल पार्क के रूप में भी जाना जाता है।

20. 18 वीं सदी का भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य, जो केवलादेव घाना नेशनल पार्क के रूप में भी जाना जाता है,संसार का सबसे महत्पूर्ण पक्षी प्रजनन और पालन स्थान के रूप में प्रसिद्ध है।

21. लौहागढ़ आयरन फोर्ट के रूप में भी जाना जाता है, लौहागढ़ भरतपुर के प्रमुख ऐतिहासिक आकर्षणों में से एक है।

22. भरतपुर संग्रहालय स्थान के विगत शाही वैभव के साथ साक्षात्कार का एक प्रमुख स्त्रोत है।

23. नेहरू पार्क, एक सुंदर बगीचा भरतपुर संग्रहालय के पास में है।

24. नेहरू पार्क रंग बिरंगे फूलों और हरी घास के मैदान से भरा हुआ है, इसकी उत्कृष्ट सुंदरता से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

25. डीग पैलेस एक मजबूत औऱ बहुत बड़ा दुर्ग है, जो भरतपुर के शासकों के लिए ग्रीष्मकालीन आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता है।

26. भरतपुर के भ्रमण का सर्वोत्तम समय अक्टूबर, नवंबर, फरवरी, और मार्च के महीनों के दौरान हैं। 27. व्यक्ति भरतपुर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए परिवहन के कई साधनों जैसे टैक्सी साइकिल रिक्शा और ऑटो-रिक्शा ले सकता है।

जोधपुर

28. राजस्थान राज्य के पश्चिमी भाग में केन्द्र में स्थित, जोधपुर शहर राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और दर्शनीय महलों, दुर्गों औऱ मंदिरों को प्रस्तुत करते हुए एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है।

29. राजस्थान राज्य के पश्चिमी भाग केन्द्र में स्थित, जोधपुर शहर राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और दर्शनीय महलों, दुर्गों औऱ मंदिरों को प्रस्तुत करते हुए एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है।

30. शहर की अर्थव्यस्था हथकरघा, वस्त्रों और कुछ धातु आधारित उद्योगों को शामिल करते हुए कई उद्योगों पर निर्भर करती है।

31. रेगिस्तान के हृदय में स्थित, राजस्थान का यह शहर राजस्थान के अनन्त मुकुट का एक भव्य रत्न है।

32. राठौंड़ों के रूप में प्रसिद्ध एक वंश के प्रमुख, राव जोधा ने मृतकों की भूमि कहलाये गये, जोधपुर की 1459 में स्थापना की।

33. मेहरानगढ़ दुर्ग, 125 मीटर की पर्वत चोटी पर स्थित औऱ 5 किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ, भारत के सबसे बड़े दुर्गों में से एक है।

34. मेहरानगढ़ दुर्ग के अन्दर कई सुसज्जित महल जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल स्थित हैं।

35. मेहरानगढ़ दुर्ग के अन्दर संग्रहालय में भी सूक्ष्म चित्रों, संगीत वाद्य यंत्रों, पोशाकों, शस्त्रागार आदि का एक समृद्ध संग्रह है।

36. मेहरानगढ़ दुर्ग के सात दरवाजे हैं औऱ शहर का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

37. उम्मेद भवन पैलेस लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है और इसने महाराजा उम्मेद सिंह के पर्यवेक्षण में 1929 से 1943 तक लगभग 16वर्ष लिये।

38. जसवंत ठाड़ा एक सफेद संगमरमर का स्मारक है, जो महाराजा जसवन्त सिंह II की याद में 1899 में बनवाया था।

39. जोधपुर के शासकों के कुछ चित्र भी जसवन्त ठाड़ा पर प्रदर्शित किये गये हैं।

40. गवर्नमेण्ट म्यूजियम उम्मेद बाग के मध्य में स्थित है और हथियारों, वस्त्रों, चित्रों, पाण्डुलिपियों, तस्वीरों, स्थानीय कला और शिल्पों का एक समृद्ध संग्रह रखता है।

41. बालसमन्द झील और महल एक कृत्रिम झील है और एक शानदार विहार स्थल है और 1159 ईस्वीं में बनवाया गया था।

42. मारवाड़ प्रमुख उत्सव है,जो अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है।

43. जोधपुर इसके काष्ट और लौह फर्नीचर, पारंपरिक जोधपुरी हस्तकला, रंगाई वस्त्रों, चमड़े के जूतों, पुरातन वस्तुओँ, कसीदा किये पायदानों, बंधाई और रंगाई की साड़ियों, चांदी के आभूषणों, स्थानीय हस्तकलाओं और वस्त्रों, लाख कार्य औऱ चूड़ियों के लिए जाना जाता है, कुछ सामान है जो आप जोधपुर से खरीद सकते हैं।

44. सेन्ट्रल मार्केट, सोजती गेट, स्टेशन रोड़, सरदार मार्केट, त्रिपोलिया बाजार, मोची बाजार, लखेरा बाजार, जोधपुर में कुछ सबसे अच्छे खरीददारी स्थानों में हैं।

45. अक्टूबर से मार्च जोधपुर शहर के भ्रमण का सर्वोत्तम समय है।

46. बिना मीटर की टैक्सी, ऑटो रिक्शा, टेम्पो और साईकिल रिक्शा जोधपुर शहर के अन्दर यातायात के प्रमुख साधन है।

47. जोधपुर का इसका अपना हवाई अड्डा है जो जयपुर, दिल्ली, उदयपुर, मुम्बई, और कुछ अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

48. जोधपुर शहर ब्रोड् गेज रेल्वे लाईनों से सीधे जुड़ा है, जो इसे राजस्थान के अन्दर और बाहर प्रमुख स्थानो से जोड़ता है।

जैसलमेर

49. जैसलमेर गर्म और झुलसाने वाली ग्रीष्म ओर ठंड़ी और जमाने वाली सर्दियों के साथ विशिष्ट रेगिस्तानी वर्ग की जलवायु के लिए जाना जाता है।

50. अक्टूबर से फरवरी जैसलमेर भ्रमण का श्रेष्ठ समय माना जाता है।

51. जैसलमेर से 16 किमी की दूरी पर स्थित, लोदुरवा जैसलमेर की प्राचीन राजधानी थी।

52. जैसलमेर की बाहरी सीमा पर स्थित लोकप्रिय सैर स्थलों में से एक, लोदुर्वा लोकप्रिय जैन मंदिर के लिए जाना जाता है, जो वर्ष भर तीर्थयात्राओं की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।

53. जैन मंदिर का मुख्य आर्षषण ‘कल्पतरू’ नामक एक दैवीय वृक्ष है और लोकप्रिय नक्काशियां और गुंबद मंदिर में अतिरिक्त आकर्षण को जोड़ते है।

54. वुड़ फॉसिल पार्क जैसलमेर के आस पास में उपलब्ध उत्कृष्ट सैर स्थलों में से एक है।

55. लाखों वर्ष पुराने जीवाश्मों के लिए प्रसिद्ध, वुड़ फॉसिल पार्क जैसलमेर में थार डेजर्ट का एक भूवैज्ञानिक चिन्ह है।

56. थार डेजर्ट का सौन्दर्य, जैसलमेर से 42 किमी दूर स्थित, सम रेतीले टीलों द्वारा अच्छी तरह बताया गया है।

57. सम रेत के टीले मानव को प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है।

58. सैंकड़ों और हजारों पर्यटक साम रेतीले टीलों से प्रकृति के अद्भुत कलात्मक दृश्य को देखने राजस्थान आते हैं और यह स्थान ऊँट अभियान के द्वारा अच्छी तरह बताया जा सकता है।

59. जैसलमेर के रेतीले शहर से 45 किमी दूर, डेजर्ट नेशनल पार्क रेतीले टीलों और झाड़ियों से ढकी पहाड़ियों के लिए जाना जाता है।

60. सैर की श्रेष्ठ जगह, डेजर्ट नेशनल पार्क काले हिरण, चिन्कारा, रेगिस्तानी लेमड़ी और श्रेष्ठ भारतीय बस्टर्ड के लिए प्रसिद्ध है।

61. जैसलमेर की सर्वश्रेष्ठ हवेलियों में से एक, अमर सागर नक्काशीदार स्तंभों और बड़े गलियारों और कमरों के लिए जानी जाती है।

62. खण्ड़ों के नमूनों पर निर्मित, अमर सागर हवेली एक पांच मंजिल ऊँची, सुंदर भित्ती चित्रोंसे सुसज्जित हवेली है।

उदयपुर

63. उदयपुर मेवाड़ के प्राचीन राज्य की ऐतिहासिक राजधानी है औऱ वर्तमान में उदयपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है।

64. झीलों और महलो का शहर, उदयपुर हरी भरी अरावली श्रेणी और स्फटिक स्वच्छ पानी की झील द्वारा घिरा हुआ है।

65. रोमांच औऱ सौंदर्य का उत्तम संयोजन, उदयपुर, चित्रकारों, कवियों, औऱ लेखकों की कल्पना के लिए प्रथम चयन हो सकता है।

66. उदयपुर राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित है और अरावली श्रेणियों से घिरा हुआ है।

67. उदयपुर इसकी सुंदर झीलों, सुनिर्मित महलों, हरे भरे बगीचों और मंदिरों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस जगह के प्रमुख आकर्षण लेक पैलेस और सिटी पैलेस हैं।

68. सिटी पैलेस पिछोला झील के किनारे पर स्थित है, यह शीशे और कांच के कार्य से निर्मित एक भव्य और प्रेरणादायी गढ़ है।

69. कलाओं और परिकल्पनाओं का एक उत्तम संयोजन, सिटी पैलेस तकनीक और स्थापत्य में इसकी उन्नति के लिए जाना जाता है।

70. सिटी पैलेस का एक भाग अब एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है, जो कला औऱ साहित्य के कुछ उत्तम रूपों को प्रदर्शित करता है।

71. उदयपुर कई संयुक्त आर्कषणों और प्राकृतिक सौन्दर्य से धन्य है, राजस्थान का एक प्रसिद्ध शहर इसके उत्कृष्य स्थापत्य और हस्तशिल्प के लिए जाना जाता है।

72. जग मंदिर, फतेह प्रकाश पैलेस, क्रिस्टल गैलरी, और शिल्पग्राम उदयपुर के आस पास में स्थित कुछ श्रेष्ठ स्मारक और स्थान हैं।

73. जग मंदिर पिछोला लेक में स्थित एक द्वीप महल है जो महाराजा करन सिंह ने राजकुमार खुर्रम के शरण स्थल के लिए बनवाया था।

74. जग मंदिर इसके सुंदर बगीचों, प्रांगण और स्लेटी और नीले पत्थर में प्रदर्शिरत नक्काशीदार “छत्री” के लिए भी जाना जाता है।

75. फतेह प्रकाश पैलेस विलासिता और सौर्दर्य का एक उत्तम उदाहरण है जो उदयपुर को शाही आतिथ्य और संस्कृति के शहर के रूप में अभिव्यक्त करता है।

76. शिल्पग्राम आधुनिक अवधारणा को कम प्रमुखता देते हुए, गांव की अवधारणा पर बनाया गया है।

77. कलाओं, संस्कृति और शिल्प का एक उत्तम मिश्रण शिल्पग्राम में प्रदर्शित किया गया है और इसके मिट्टी के काम के लिए जाना जाता है, जो मुख्यतः गहरी भूरी और गहरी लाल मिट्टी में किया जाता है।

78. मेवाड़ उत्सव उदयपुर के महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है और प्रतिवर्ष अप्रैल माह में मनाया जाता है।

79. उदयपुर में खरीददारी हमेशा एक सुखदायी अनुभव है और यह स्थानीय व्यापारियों द्वारा विकसित उत्कृष्ट हस्तशिल्प और कार्यों को दिखाती है।

80. उदयपुर के मुख्य बाजार पैलेस रोड़, हाथी पोल, बड़ा बाजार, बापू बाजार और चेतक सर्किल हैं। राजस्थली राजस्थान सरकार का स्वीकृति प्राप्त विक्रय केन्द्र है।

81. सितंबर से मार्च उदयपुर भ्रमण का सबसे उत्तम मौसम है।

बीकानेर

82. राजसी शहर बीकानेर का एक अद्वितिय कालजयी आकर्षण है।

83. राजस्थान का यह रेगिस्तानी शहर इसके आकर्षणों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें दुर्ग, मंदिर, और कैमल फेस्टिवल शामिल हैं। ऊँटों के देश के रूप में प्रचलित बीकानेर नें औद्योगिक क्षेत्र में भी एक छाप बनाई है।

84. इसकी बीकानेरी मिठाइयों औऱ नाश्ते के लिए संसार में सुप्रसिद्ध, बीकानेर का प्रगतिशील पर्यटन उद्योग भी राजस्थान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

85. एक रोमांचक ऊँट की सवारी की आशा करने वाले पर्यटकों के लिए बीकानेर एक प्रमुख केन्द्र भी है, जो सुदूर राजस्थान की उत्तम जीवन शैली में अन्तदृष्टी प्रदान करता है।

86. जूनागढ़ दुर्ग के अन्दर एक संग्रहालय है, जिसमें बहुमूल्य पुरातन वस्तुओं का संग्रह है।

87. लालगढ़ पैलेस महाराजा गंगा सिंह द्वारा बनवाया गया था और बीकानेर शहर से 3 किमी उत्तर में स्थित है।

88. दि राजस्थान टूरिज्म डवलपमेन्ट कॉर्पोरेशन(आर.टी.डी.सी.) ने लालगढ़ पैलेस का एक भाग एक होटल में बदल दिया है।

89. लालगढ़ पैलेस के अन्दर एक पुस्तकालय भी है, जिसमें ब़डी संख्या में संस्कृत पाण्डुलिपियां हैं।

90. गजनेर वन्य जीव अभ्यारण्य बीकानेर शहर से 32 किमी दूर है औऱ जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है।

91. भाण्डेश्वर और साण्डेश्वर मंदिर दो भाईयों द्वारा बनवाये गये थे और जैन तीर्थंकर, पार्श्वनाथ जी को समर्पित हैं।

92. कांच का कार्य और सोने के वर्क के चित्र भाण्डेश्वर औऱ साण्डेश्वर मंदिरों के प्रमुख आकर्षण हैं।

93. दि गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम में मिट्टी के बर्तनों, चित्रों, कालीनों, सिक्कों और शस्त्रागारों का एक बड़ा संग्रह है।

94. केमल फेस्टीवल प्रतिवर्ष जनवरी महीने में मनाया जाता है और राजस्थान के डिपार्टमेन्ट ऑफ टूरिज्म, आर्ट एण्ड कल्चर द्वारा आयोजित किया जाता है।

95. प्रसिद्ध बीकानेरी भुजिया और मिठाईयां बीकानेर में खरीददारी के कुछ सबसे अच्छे सामान हैं।

96. भ्रमण करने के श्रेष्ठ महीने अक्टूबर से मार्च शहर के भ्रमण का श्रेष्ठ समय है।

माउण्ट आबू

97.माउण्ट आबू, अरावली श्रेणी के दक्षिणी शिखर पर स्थित, राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय स्थल है।

98.ब्रिटिश शासन के दौरान माउण्ट आबू अंग्रेजों का मनपसंद ग्रीष्मकालीन गन्तव्य बन गया ।

99. गौमुख मंदिर भगवान राम को समर्पित है, यह छोटा मंदिर माउण्ट आबू के 4 किमी दक्षिण मे स्थित है और इसका नाम एक संगमरमर का गाय के मुंह से बहते हुए एक प्राकृतिक झरने से लिया है।

100. नक्की झील, एक कृत्रिम झील कस्बे के हृदय में स्थित है और सुदृश्य पहाड़ियों, सुंदर बगीचों से घिरा हुआ है और एक अवश्य दर्शनीय स्थान है।

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